India is great, but not so...
March 31, 2025
Still, it’s my motherland. And for that, I am both lucky and duty bound—to love it, to fight for it, and to dream that one day, it will be as great as it claims to be.
ये क्या है बे?
March 15, 2025
घूमने गए थे पहाड़ों में सुकून लेने,
पर लोग वहाँ भी ईमेल चेक कर रहे थे।
कहते हैं, शहर की भीड़ से दूर आए हैं,
फिर पार्किंग ढूँढने में एक घंटा लगा दिया!
पेड़ की कीमत, पढ़ के चुकाओ
March 8, 2025
पढ़ो क्योंकि ये उन चुनिंदा कुर्बानियों में से है, जो जब पेड़ देता है तो उसे तकलीफ नहीं होती है। वो दधीच सा महसूस करते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि ये जो मैं कतरा कतरा कट रहा हूँ, इससे एक कागज़ बनेगा जिसपे नफरतों के एंटीडोट्स लिखे जाएंगे, जिसे पढ़ के मानव क्रूरता से करुणा की राह पर चलेगा।
शहर
February 7, 2025
स्टेशन पर खड़ा था। प्लेटफ़ॉर्म नंबर 3 पर एक ट्रेन रुकी—"यह गाड़ी अब 'वापसी' की ओर नहीं जाती।" मेरे पीछे से किसी ने मेरा नाम पुकारा। मुड़ा तो एक परछाई ने हाथ बढ़ाया। उसकी उंगलियाँ धुंधली पिक्सल्स में बिखर गईं। मैंने अपना हाथ आगे किया... या पीछे खींच लिया?
शाम ढल गई... अब कहाँ जाओगे?
January 31, 2025
रास्ते के अंत में एक धुआँ था—चिमनी का। धुएँ ने उसकी आँखों में घर बना लिया। उसने देखा: माँ दहलीज पर बैठी थी, उसकी थाली सामने रखी—आलू के पराठे ठंडे हो चुके थे, पर उनकी गर्माहट अब भी हवा में तैर रही थी। "शाम ढल गई, माँ..." उसने कहा, "पर लौट आया हूँ... उसी शाम में, जो तेरी आँखों में कभी नहीं ढलती।" चिट्ठी हवा में उड़ गई—शब्दों की जगह अब सिर्फ़ सुकून था। शाम ढल गई... अब कहाँ जाओगे?
क्या मैं मैं हूँ?
January 12, 2025
कोशिश करिये, खुद को खुद में बसाने की, शायद उस पल… हम खुद से मिल पाएं। क्योंकि आख़िर मैं, हम सब हैं कौन, क्योंकि हम, हम तो नहीं हैं।
What I say about, when I say about stories.
January 2, 2025
मुझे याद है, उनका एक थका हुआ चेहरा, पर उस थकान के पीछे एक अजीब सी उजास थी। उनकी आँखों में एक नई दुनिया थी, जो शायद मेरी मुस्कान के साथ बूनी जा रही थी। मेरे नन्हे हाथ उनकी उंगली के एक कोने को थाम कर अपने होने का एहसास दिलाने की कोशिश करते थे।
गीत, अगीत, या शायद, बिखरा मौन और अनकहा सत्य
January 15, 2025
इस कलियुगी जीवन में, न गीत टिकता है, न अगीत संभलता। यहाँ मौन की सुंदरता भी भाग्य के ठहाकों में कहीं खो जाती है।
Is the Pen Penning? Or is the Ink Over?
January 1, 2025
An angel that went to the hospital, but never came back. Dead she was proclaimed, but her spirit was alive, perhaps looking, searching and crying for justice. The night that saw the devilism was terrorized by its darkness and the fire that burned her corpse cried in despair witnessing her bruises. The soil that comforted and hid her pain, shedded tears seeing one more victim being ravished by a devil in the mask of a human. She chooses to be a doctor, thereby being the shadow and manifestation of god. She picked the noblest of all professions, the toughest of all professions, not for herself but to find a cure for every wound. She is gone, for this world doesn't deserve her, says the generality. 'But will I be the last' , asks her bleeding soul?