
शाम ढल गई... अब कहाँ जाओगे?
January 31, 2025
उसकी आँखों में धूल थी, पैरों में काँटे, और दिल में एक सन्नाटा... जो गूँज रहा था, "भाग तो गया, पर अब?" सूरज ढल चुका था। आकाश का लाल सिंदूर धीरे-धीरे काली चादर में समा रहा था, मानो प्रकृति भी उससे पूछ रही हो — "तूने घर छोड़ दिया, अब इस अंधेरे को कैसे छूएगा?"
चौराहे पर खड़ा वह चार दर्पणों के बीच फँसा था। हर राह उसकी परछाईं को निगलकर थूक देती—"जा, तू अधूरा है।" बैग में बंद थी उसकी दुनिया: एक टूटी घड़ी की सुई जो समय को मारकर भागी थी, माँ की चिट्ठी जिसे पढ़ने का अर्थ था—"सच को छू लेना।"
पास की झोपड़ी से उठती भाप में उसने देखा: एक बच्चा माँ की चुनरी में सिमटकर हँस रहा था। वह हँसी उसके कानों में गूँजी—"यह तेरी हँसी थी ना, जो किसी और के होठों पर मर गई?"
उसने चिट्ठी खोली। काग़ज़ पर माँ की लिखावट नहीं, उसके अपने ही दर्द के धागे थे—"बेटा, रसोई की दीवार पर तेरे हाथ का वो निशान अब भी है... जब तूने उँचाई नापी थी।" पत्र के अंत में एक बूँद—शायद आँसू, शायद चाय।
आकाश में तारे टूट रहे थे। एक तारा उसकी हथेली पर गिरा—ठंडा, निर्जीव। "तारे भी तो घर लौटते हैं... समंदर की मुट्ठी में सोने के लिए," उसने सोचा। पर उसका समंदर कहाँ था? वह तो रेत का पुतला था, जिसकी आँखों में बचपन का पानी सूख चुका था।
दूर से ट्रक की आवाज़ आई—एक चीख़, जैसे रात का गला फट गया हो। उसने बैग उठाया। चिट्ठी को सूँघा—उसमें माँ के हाथों की खुशबू थी, वो खुशबू जो उसके जन्म के पहले दिन से उसकी नसों में बहती आई थी। अचानक उसके पैरों ने धरती को छुआ। रेत में एक रेखा खींची—वह रेखा जो नदी का रास्ता बन गई। नदी जो घर की चौखट तक जाती थी...
"शाम ढल गई..." हवा ने कहा, "अब तू किस अँधेरे को अपना आईना बनाएगा? उस अँधेरे को जिसमें तेरी माँ का दिया दीया अब भी तेरे लिए जलता है?"
उसने एक पत्थर उठाया—और नदी में फेंक दिया। पानी में उछली लहरों ने उसकी परछाईं को तोड़ दिया। परछाईं के टुकड़े चिट्ठी पर गिरे—माँ के शब्दों में समा गए। वह चल पड़ा।
रास्ते के अंत में एक धुआँ था—चिमनी का। धुएँ ने उसकी आँखों में घर बना लिया। उसने देखा: माँ दहलीज पर बैठी थी, उसकी थाली सामने रखी—आलू के पराठे ठंडे हो चुके थे, पर उनकी गर्माहट अब भी हवा में तैर रही थी।
"शाम ढल गई, माँ..." उसने कहा, "पर लौट आया हूँ... उसी शाम में, जो तेरी आँखों में कभी नहीं ढलती।"
चिट्ठी हवा में उड़ गई—शब्दों की जगह अब सिर्फ़ सुकून था।
शाम ढल गई... अब कहाँ जाओगे?
~apurv
© Image Credits: Pablo Picasso